Panchayat Season 4 Review: क्या Phulera की सादगी Politics में खो गई?

Panchayat Season 4 creators: Deepak Kumar Mishra और Chandan Kumar
Panchayat Season 4 cast: Jitendra Kumar, Neena Gupta, Raghubir Yadav, Faisal Malik, Chandan Roy, Sanvikaa, Durgesh Kumar, Sunita Rajwar, और Pankaj Jha
Panchayat Season 4 rating: 2.5 stars

Panchayat का नया सीज़न एक चुनावी समर के इर्द-गिर्द घूमता है, जहां Manju Devi (Neena Gupta) ने अपने चुनाव चिन्ह के रूप में साधारण “lauki” को चुना है, जबकि उनकी प्रतिद्वंद्वी Kranti Devi (Sunita Rajwar) “pressure cooker” के साथ मैदान में हैं। शुरुआत में यह ग्रामीण भारत की भोली-भाली राजनीति का प्रतीक लगता है, लेकिन जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है, यह साफ हो जाता है कि प्लॉट ज़रूरत से ज़्यादा ‘overcooked’ हो चुका है।

Panchayat

पिछले सीजन का अंत एक अराजक माहौल में हुआ था और अब नए सीजन में पंचायत चुनाव की तारीखों की घोषणा होते ही राजनीतिक टकराव और बढ़ जाता है। भारत में पंचायत चुनावों के दौरान हिंसा कोई नई बात नहीं है, और Phulera गांव भी इससे अछूता नहीं रहता। Manju Devi और Kranti Devi के बीच Pradhan की कुर्सी को लेकर मुकाबला अब तल्ख़ हो चुका है।

जब Abhishek Tripathi (Jitendra Kumar), जिन्हें गांव वाले प्यार से “Sachivji” कहते हैं, Phulera पंचायत के सचिव बनते हैं, तो सीरीज़ एक भावुक, सादगी भरे सफर की शुरुआत करती है। हालांकि, Manju Devi नाम मात्र की Pradhan होती हैं, असली फैसले उनके पति Pradhanji (Raghubir Yadav) लेते हैं। पहले के सीजन ग्रामीण जीवन की मासूमियत और हास्य को बहुत ही सुंदरता से दिखाते थे, लेकिन इस सीजन में कहानी का कैनवास बड़ा हुआ है—नए किरदार, बड़े मुद्दे और लंबी-लंबी कहानियाँ।

दुर्भाग्यवश, इस बार Pradhanji, Sachivji, Vikas (Chandan Roy), और Prahlad (Faisal Malik) जैसे मुख्य किरदारों की कहानियों को उतना विस्तार नहीं दिया गया है। Rinki जहां अपनी पहचान बनाने की कोशिश कर रही है और Manju Devi अब सच में Pradhan की भूमिका निभाना चाहती हैं, वहीं महिला किरदारों को अपेक्षित स्थान नहीं मिल पाता। यहां तक कि Kranti Devi भी पहले जैसी तेज़-तर्रार नहीं लगतीं।

Phulera में चुनावी माहौल जरूर है, लेकिन पिछली घटनाओं—जैसे चप्पल अदला-बदली की हास्यास्पद स्थिति या Rinki का पीछा करता हुआ आशिक—जैसी नाटकीयता की कमी खलती है। Sachivji और Rinki के बीच की प्रेम कहानी भी इस बार न के बराबर है। कुछ सीन जरूर हैं लेकिन वो या तो कहानी को खींचने के लिए डाले गए लगते हैं या फिर ज़बरदस्ती जोड़े गए।

सीरीज़ ने पिछले सीजन में साफ कर दिया था कि वह अब सिर्फ हल्की-फुल्की कॉमेडी नहीं, बल्कि गहराई वाले सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों की ओर बढ़ रही है। लेकिन इस बार tone और atmosphere में बदलाव ज़्यादा साफ दिखता है, जो हमेशा कहानी को मज़बूत नहीं बनाते। नाटकीय सीन, जो दर्शक को जोड़ने चाहिए थे, इस बार उतना असर नहीं छोड़ते।

Panchayat की शुरुआत rural India की एक प्यारी और भरोसेमंद झलक के रूप में हुई थी—जहां छोटे-छोटे पल, सहज ह्यूमर और दिल छू लेने वाली कहानियाँ थीं। इसने हिंसा या अश्लीलता के सहारे लोकप्रियता पाने वाले शो से हटकर अपनी अलग पहचान बनाई थी। यहां तक कि शहरों में रहने वाले दर्शक भी Phulera की जमीनी हकीकत से खुद को जोड़ पाते थे।

लेकिन Panchayat Season 4 में Phulera अब पहले जैसा नहीं रहा। ज़रूरत से ज़्यादा पॉलिटिक्स, कमज़ोर storytelling और फीके character arcs ने उस simplicity को गहरा नुकसान पहुंचाया है जो इस सीरीज़ की आत्मा थी।

Final Verdict: Panchayat Season 4 rural politics की दिलचस्प शुरुआत करता है लेकिन इसकी गहराई और प्रभाव पिछली seasons जितनी मजबूत नहीं है। अगर आप सिर्फ nostalgia के लिए देखना चाहें तो ठीक है, लेकिन उम्मीदें थोड़ी कम रखें।

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